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सहस चौरासिया एक दिशि छाजहीं ॥ ढोल सम गोल ऊपर तले सुन्दरं ॥भौन. ॥२ ॥ एक इक चार दिशि चार शुभ बावरी । एक इक लाख जोजन अमल - जल भरी ॥ चहुँ दिशा चार वन लाख जोजन वरं ॥ भौन. ॥3 ॥ सोल वापीन मधि सोल गिरि दधिमुखं । सहस दश महाजोजन लखत ही सुखं ॥ बावरी कोण दो महिं दो रतिकरं ॥ भौन. ॥४ ॥ शैल बत्तीस इक सहस जोजन कहे । चार सोलै मिलें सर्व बावन लहे ॥ एक इक सीस पर एक जिनमन्दिरं ॥ भौन ॥५ ॥ बिम्ब अठ एक सौ रतनमयी सोंहही । देव देवी सरब नयन मन मोहही ॥ पाँच सै धनुष तन पद्म-आसन परं ॥भौन. ॥६ ॥ लाल नख-मुख नयन स्याम अरु स्वेत हैं । स्याम रंग भोंह सिर-केश छवि देत हैं ॥ वचन बोलत मनों हँसत कालुष हरं ॥भौन. ॥७ ॥ कोटि-शशि-भानु-दुति-तेज छिप जात है । महा-वैराग - परिणाम ठहरात है ॥ वयन नहिं कहै लखि होत सम्यक्धरं ॥ भौन. ॥८॥ सोरठा
नन्दीश्वर - जिन-धाम, प्रतिमा - महिमा को कहै । द्यानत लीनो नाम, यही भगति शिव-सुख करै ॥
ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्य: पूर्णार्घं निर्वपामिति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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