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दीपजोति तमहार, घट-पट परकाशै महा।
सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
धूप घ्रान सुखकार, रोग विघन जड़ता हरे ।
सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर-शिवफलकरे।
सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु ।
सम्यग्ज्ञान विचार, आठ भेद पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा आप आप जानै नियत, ग्रन्थ पठन व्योहार । संशय विभ्रम मोह विन, अष्ट अंग गुनकार ।। सम्यक्'ज्ञान-रतन मन भाया, आगम तीजा नैन बताया। अक्षर शुद्ध अर्थ पहिचानो, अक्षर अरथ उभय संग जानो ॥
जानो सुकाल-पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइए । तप रीति गहि बहुमान देके, विनय गुन चित लाइए । ये आठ भेद करम उछेदक, ज्ञान-दर्पन देखना। इस ज्ञान ही सौं भरत सीझे, और सब पट-पेखना ॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा ।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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