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छन्द पद्धरि जय ऋषभदेव ऋषि-गन नमन्त, जय अजित जीत वसु अरि तुरन्त । जय सम्भव भव-भय करत चूर, जय अभिनन्दन आनन्दपूर ॥१॥
जय सुमति सुमति दायक दयाल,जयपद्म पद्म दुति तन रसाल । जय जय सुपास भव-पास-नाश, जयचन्द, चन्द-तन-दुति-प्रकाश ॥
जय पुष्प-दन्त दुति-दन्त-सेत, जय शीतल शीतल-गुन-निकेत । जय श्रेयनाथ नुत-सहजभुज्ज, जय वासव-पूजित वासुपुज्ज ॥३॥ जय विमल विमल-पद-देनहार, जय जय अनन्त गुन-गन अपार । जय धर्म धर्म शिवशर्म देत, जय शान्ति शान्ति-पुष्टी करेत ॥४॥ जय कुन्थु कुन्थु-आदिक रखेय, जय अरजिन वसु अरि छय करेय। जय मल्लि मल्ल हत-मोहमल्ल, जय मुनिसुव्रत व्रतशल्य दल्ल ॥५॥
जय नमि नित वासव-नुत सपेम, जय नेमिनाथ वृष-चक्र-नेम । जय पारसनाथ अनाथ-नाथ, जय वर्धमान शिव-नगर साथ ॥ ६॥
छन्द घत्तानन्द चौबीस जिनन्दा, आनन्द-कन्दा, पाप-निकन्दा, सुखकारी ।
तिन पद-जुग-चन्दा, उदय अमन्दा, वासव-वन्दा, हितकारी ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरान्तेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ।
सोरठा भुक्ति-मुक्ति-दातार, चौबीसों जिनराजवर । तिन पद मन वच धार, जो पूजै सो शिव लहै ॥
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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