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दशविध गंधमनोहर लेकर, वातहोत्र में ढाई । अष्टकर ये दुष्ट जरतु हैं, धूप सुधूम उड़ाई
वासुपूज्य वसुपूज-तनुज - पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई || ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7।
सुरस सुपक्क सुपावन फल लै कंचन - थार भराई । मोक्ष-महाफलदायक लखि प्रभु, भेंट धरों गुनगाई || वासुपूज्य वसुपूज-तनुज - पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई ।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जलफल दरब मिलाय गाय गुन, आठों अंग नमाई । शिवपदराज हेत हे श्रीपति ! निकट धरों यह लाई ||
वासुपूज्य वसुपूज-तनुज - पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको शिवतिय सनमुख धाई।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद - प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (छंद पाईता)
कलि छट्ट असाढ़ सुहायौ, गरभागम मंगल पायौ।
दशमें दिवितें इत आये, शतइन्द्र जजे सिर नाये।
ॐ ह्रीं आषाढ़ कृष्णा-षष्ठ्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1।
कलि चौदस फागुन जानो, जनमे जगदीश महानो। हरि मेरु जजे तब जाई, हम पूजत हैं चितलाई। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा - चतुर्दश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
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