________________
श्री पार्श्वनाथ जिनपूजन-1 (रचयिता - बख्तावरलाल)
गीता छन्द वर स्वर्ग प्राणत को विहाय, सुमात वामा सुत भये, अश्वसेन के पारस जिनेश्वर, चरन जिनके सुर नये । नौ हाथ उन्नत तन विराजै, उरग लच्छन पद लसैं,
थापूँ तुम्हें जिन आय तिष्ठो कर्म मेरे सब नसैं ॥ ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतरतु अवतरतु संवौषट् । (इति आह्वाननम्)
__ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवतु भवतु वषट् । (सन्निधिकरणम्)
अथाष्टक छन्द नाराच क्षीरसोम के समान अम्बुसार लाइए। हेमपात्र धारिक सु आपको चढ़ाइए। पार्शवनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा ।
दीजिये निवास मोक्ष भूलिए नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय ज
य जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदनादि केशरादि स्वच्छ गंध लीजिए।
आपचरण चर्च मोहताप को हनीजिए । पाश्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा।
दीजिये निवास मोक्ष भूलिए नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
627