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जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।। 7 । चौंतिस अतिशय के स्वामी हो, वर प्रातिहार्य हैं आठ कहे। आनन्त्य-चतुष्टय गुण छयालिस, फिर भी सब गुण आनन्त्य कहे ||
बस केवल ज्ञानमती हेतू, प्रभु तुम गुण गाने आये हैं।। जय पार्श्वप्रभो! करुणासिंधो ! हम शरण तुम्हारी आये हैं। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं ।। 8 ।
(दोहा)
जो पूजें नित भक्ति से, पार्श्वनाथ पदपद्म
शक्ति मिले सर्वसहा, होवे परमानंद ||
ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
(शेरछंद)
जो भव्य पार्श्वनाथ का पूजन ये करे || वे आधि-व्याधि संकटादि कष्ट परिहरें ।। अतिशायि-पुण्यबंध से ईप्सित सफल करें।
सज्ज्ञानमती से अनन्त - संपदा वरें ||
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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