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________________ बदि पौष एकादश सोहै, पारस मुकती मन मोहै। निर्जन वन ध्यान लगाया, निज समरस विभो जगाया।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। बदि चैत चतुर्थी आयी, विभु केवल-ज्योति जगायी। स्याद्वाद धर्म उपदेशा, भव्यों का मिटा कलेशा।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा-चतुर्थ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्रावण सुदि सप्तमि आयी, विभु मुक्ति-सुन्दरी पायी। वसु-गुणमय शाश्वत राजें, पूजत भव-भव दुख भाजें।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (दोहा) नगर बिहारी राजते, हे पारस महाराज। गुणमाला वर्णन करूँ, सिद्ध होय सब काज।। (पद्धरि छन्द) जय पारस नाथ अनाथ-नाथ, सुरगण नित चरणन नमत माथ। अद्भुत तुमरी महिमा अपार, अतिशय है बिहारी क्षेत्र सार।।1।। दश अतिशय-युत तुम जन्म लीन, इन्द्रादि मेरु अभिषेक कीन। जब युवा भये अतिशय विशाल, शादी की चर्चा थी खुशाल।2। शादी से ली तुम दृष्टि मोड़, लीना मुक्ति से नेह जोड़। जलते लखि नागिन-नाग दोय, नवकार सुना गए देव होय।।3।। होकर विराग दीक्षा विभोर, द्वादश तप का था जोर-शोर। सहसा कमठासुर किया आन, उपसर्ग कष्ट दीनो महान।।4।। सुर पद्मावति-धरणेन्द्र जोय, पुरव भव मन्त्र प्रभाव दोय। आये उपकारी जान नाथ, कमठासुर चरणन दियो माथ।।5।। कर्मन की त्रेसठ प्रकृति नाश, अष्टादश दोष नशाय खास। केवलज्ञानी होकर अशेष, तुम प्रगट लखे जग अर्थ शेष।।6।। 588
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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