________________
सुखदास सुपेती, अछत सहेती, कलश सु लेती पुंज करो। बिनखंड सुउज्ज्वल गुण अति निर्मल, देहि अक्षेपद वास धरो।।
पूजो प्रभु पारस, देत महारस, विघ्नहरण जिन यश गाया। कमठा मद-मारण, नाग-उधारण, संयम-धारण तज माया। 3।। ऊँ ह्रीं श्रीमहुवानगर-विराजित-विघ्नहर-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय
अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
चंपक ले पूजो, अरु मचकुन्दो, वास सुगन्धो चुनि आनो। बहु परिमल जाति, सुगंधसुपाति, मदनहरन तन सुख मानो।।
पूजो प्रभु पारस, देत महारस, विघ्नहरण जिन यश गाया। कमठा मद-मारण, नाग-उधारण, संयम-धारण तज माया।। 4।। ऊँ ह्रीं श्रीमहुवानगर-विराजित-विघ्नहर-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय
कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
घेवर ले साजे, सुखमा ताजे, सरस मनोहर अति ल्याजे। कंचन भरि झारी, फेर रसाली क्षुधा-निशाली सुख याजे।।
पूजो प्रभु पारस, देत महारस, विघ्नहरण जिन यश गाया। कमठा मद-मारण, नाग-उधारण, संयम-धारण तज माया।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीमहुवानगर-विराजित-विघ्नहर-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय
क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कंचन ले दीपं, ज्योति अनूपम, वाति कपूरं जोय धरं। मन-ज्ञान-उजारण, तिमिर-निवारण, शिवमग परकाश करं।।
पूजो प्रभु पारस, देत महारस, विघ्नहरण जिन यश गाया। कमठा मद-मारण, नाग-उधारण, संयम-धारण तज माया।। 6।। ऊँ ह्रीं श्रीमहुवानगर-विराजित-विघ्नहर-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय
मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
575