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पशुओं का सुनकर क्रन्दन, उनका तोड़ा था बंधन।
गिरनार गिरि को जाये, तप धरकर ध्यान लगाये।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-षष्ट्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
तप से जिनात्म जगाया, केवल का दीप जलाया। फिर ज्ञान की वर्षा कीनी, भव्यों ने दीक्षा लीनी।। ऊँ ह्रीं आश्विनशुक्ल-प्रतिपदायां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रायअध्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
अंतिम शरीर को छोड़ा, कर्मों का पर्वत तोड़ा। मुक्ती में किया था वासा, नहि जग से कोई आशा।। ऊँ ह्रीं आषाढ़शुक्ला-अष्टम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।
___ जयमाला (दोहा) सिद्ध प्रभु जिन भारती, मन-वच-तन से धार। श्री नेमिनाथ भगवान को, न मन करूँ शत बार।।
(चौपाई) नेमी तुम्हारा जय-जयकारा, वंदन करता बारंबारा। कृपासिन्धु तुम दीनदयाल, आत्म धर्म जग के हो लाल।1।
रागद्वेष अरु छोड़ी माया, कंचन जैसी निर्मल काया। रत्नवृष्टि जब होने लागी, सौरीपर की किस्मत जागी।2। शिवादेवी की गर्भ अवस्था, देव-देवियां करें व्यवस्था। श्रावण सुदी षष्ठी शुभ प्यारी, धरती पर आये अवतारी।3।
जमुना बहती नगर किनारे, नेमी प्रभु के चरण पखारे। दोज चन्द्र-सम बढ़ने लागे, हिंसा झूठ पाप को त्यागे।4। कुटुम्ब कबीला बहुत बड़ा था, सबने आपका ध्यान रखा था। श्री बलराम जी और कन्हैया, सबके सब थे आपके भैया।5। आपस में मिल-जुल कर रहते, अपने मन की बातें कहते।
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