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निवृत्ति प्रवृत्ति निसार, अक्षय पद पाया। कर में लेकर के पुंज, हे प्रभु मैं आया।। श्री नेमिनाथ भगवान, दिव्य दिवाकर हो।
हो दुष्ट कर्म चकचूर आप प्रभाकर हो।। 3।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।31
इन्द्रिय सुख से हो विरक्त, दूर विभाव किया।
मंदर सुमेरू के पुष्प, चरणों में लाया।। श्री नेमिनाथ भगवान, दिव्य दिवाकर हो।
हो दुष्ट कर्म चकचूर आप प्रभाकर हो।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
व्यंजन है विविध प्रकार, लेकर के आया।
पूजा भक्ति के भाव, मन में है भाया।। श्री नेमिनाथ भगवान, दिव्य दिवाकर हो।
हो दुष्ट कर्म चकचूर आप प्रभाकर हो।। 5।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
मन पर छाया अज्ञान, आप तिमिर नाशक। दीपक ले आया नाथ, जो रवितम भासक।।
श्री नेमिनाथ भगवान, दिव्य दिवाकर हो।
हो दुष्ट कर्म चकचूर आप प्रभाकर हो।। 6।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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