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यह कर्म महाबलवान, चहुँगति भरमाये । खेऊँ चरणन में धूप, करम सब कट जावे।। श्री मुनिसुव्रत भगवान, भदवधि पार करो । मन-वच-तन पूजूँ आज, संकट दूर करो ।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनायधूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बहुविधि के ऋतुफल लाय चरण चढ़ावत हूँ। शिवपद निजपद मिल जाय, यह मन भावत हूँ।। श्री मुनिसुव्रत भगवान, भदवधि पार करो । मन-वच-तन पूजूँ आज, संकट दूर करो।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल वसु द्रव्य मिलाय, अर्घ चढ़ावत हूँ। शिवपद मिलने के काज, तुम गुण गावत हूँ।। श्री मुनिसुव्रत भगवान, भदवधि पार करो । मन-वच-तन पूजूँ आज, संकट दूर करो ।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अनघ्यपद-प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
ऊँ ह्रीं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान- मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
(दोहा)
अब वरणो जयमालिका, प्रभु मुनिसुव्रतनाथ, देव-इन्द्र-नर-वंद्य पद, जिन्हें चढ़ावत माथ पूजन कर हर्षित हुआ, आज सकल परिवार, मुनिसुव्रत प्रभु की सदा, होवे जय-जयकार |
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