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नारंगी बादाम सुकेला एला दाडिम फल सहकार। कंचन थाल माहिं धर लायो, अरचत ही पाऊँ शिव नार।।
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर द्वादश-मदन-तनो पद पाय।
तिन के चरण-कमल के पूजे रोग-शोक दुःख-दारिद जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल-फलादि वसु-द्रव्य संवारे अर्घ चढ़ाये मंगल गाय। बखत रतन के तुम ही साहिब दीजे शिवपुर राजकराय।।
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर द्वादश-मदन-तनो पद पाय।
तिन के चरण-कमल के पूजे रोग-शोक दुःख-दारिद जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वामीति स्वाहा।91
पंचकल्याणक (छन्द उपगति) भादव सप्तमि श्यामा, सर्वारथ त्याग गजपुर आये। माता ऐरा नामा, मैं पूजूं ध्याऊँ अर्घ शुभ लाये।। ऊँ ह्रीं भाद्रपदकृष्णा-सप्तम्यां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।1।
जन्मे तीरथ नाथं, वर जेठ असित चतुर्दशी सोहै। हरिगण नावें माथं, मैं पूजूं शांतिचरण युग जोहै।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
चौदस जेठ अंधयारी, कानन में जाय योग प्रभु लीन्हा। नवनिधि-रत्न सुछांरी, मैं वन्दू आत्मसार जिन चीन्हा।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
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