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उल्कापात देखकर तुमको एक दिवस वैराग्य हुआ। ज्येष्ठ कृष्ण द्वादश को स्वामी राज्य पाठ का त्याग हुआ।। गये सुहेतुक वन में तरु अश्वत्थ निकट दीक्षा धारी।
जय अनन्तप्रभु नग्न दिगम्बर वीतराग मुद्रा धारी।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय ज्येष्ठकृष्णा-द्वादश्यां तपःकल्याण-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
एक मास तक प्रतिमा योग धार कर शुक्ल-ध्यान किया। चार घातिया कर्म नाश कर तुमने केवलज्ञान लिया।। चैत्र मास की कृष्ण अमावस्या को शिव-सन्देश दिया।
जय अनन्त जिन भव्य जनों को परम श्रेष्ठ उपदेश दिया। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय चैत्रकृष्णा-अमावस्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
चैत्र कृष्ण की श्रेष्ठ अमावस्या को तुमने निर्वाण लिया। कूट स्वयंभू सम्मेदाचल देवों ने मिल जयगान किया।। हो अयोग केवली योग का प्रथम समय में अन्त किया।
जय अनन्तप्रभु निज-सिद्धत्व प्रगट कर पद भगवन्त लिया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय चैत्रकृष्णा-अमावस्यां मोक्षमंगल-मंडिताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
जयमाला चतुर्दशम तीर्थंकर स्वामी पूज्य अनन्तनाथ भगवान्। दिव्यध्वनि के द्वारा तुमने किया भव्य जन का कल्याण।।
थे पचास गणधर जिनमें पहले गणधर थे जय मुनिवर। सर्वश्री थी मुख्य आर्यिका श्रोता भव्य-जीव सुर-नर।। चौदह जीव-समास मार्गणा चौदह तुमने बतलाये।
चौदह गुणस्थान जीवों के परिणामों के दर्शाये।। बादर-सूक्ष्म जीव एकेन्द्रिय पर्याप्तक व अपर्याप्तक।
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