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जयमाला
(दोहा)
जय चंद्रजिनेन्द्र दयानिदान दश लक्ष पूर्व की आयु पाये। किया केश लोच चन्द्र नगर से निकल वैराग्य भावना भाये ।।
तहसील खानपुर से लगा चांदखेड़ी एक गांव। रूपाली नदी पर बना आदिनाथ जिन धाम || संवत् सतरह सौ तीस में जब आए आदिनाथ भगवान । शिखर बन्द मन्दिर था पहले से चन्दाप्रभु भगवान।। प्रतिमा अचल हुई साथ थे किशनदास बघैरवाल कोटा दीवान। बनवाया तिलस्मी मन्दिर किये विराजामन आदिनाथ भगवान ।।
शिखर नहीं आदिनाथ पर अंचल की छटा निराली । राजस्थान का चांदखेड़ी तीर्थ चतुर्थ कालीन प्रतिमाएँ निराली। अनुमान लगाओ वैभव का अचल श्रद्धा श्रावकों की । रत्नों की प्रतिमाएँ विराजमान छटा चांदखेड़ी चन्दाप्रभु की संवत् सतरह सो छियालीस जगतकीर्ति जी ने दी आशीष महान । होते थे दर्शन चतुर्थ कालीन प्रतिमाओं का दुंदुभी बजती थी महान || हुआ ऊँटों पर आक्रमण डाकू असफल महिमा चन्दाप्रभु भगवान। उत्तर दरवाजा बन्द कराकर बन्द किये चन्दाप्रभु दर्शन || चतुर्थ कालीन ये प्रतिमाएँ यक्ष-रक्षित अतिशय - धारी। गंधोदक की वर्षा होती अक्षय तृतीया मंगलकारी ।।
इस नगर खानपुर में चांदखेड़ी स्थान निराला है। दुःख दुःखियों का हरने वाला चन्द्रनाम अति प्यारा है।। जो भाव-सहित पूजा करते मन-वांछित फल पा जाते हैं। दर्शन से रोग नशे सारे गुणगान तुम्हारा गाते हैं। मैं भी नाथ शरण आया कर्मों ने मुझे सताया है यह कर्म बहुत दुःख देत है प्रभु एक सहारा तेरा है।। मुनि सुधासागर जी को आ चमत्कार दिखाया है। चमत्कार को नमस्कार चरणों में शीश झुका है॥
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