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मोह तिमिर नाशन को प्रभु तेरे चरणों में आया हूँ। यह दीप समर्पण करके मैं मिथ्या-तम हरने आया हूँ।। भव-सागर पार करो स्वामी, विनती करने को आया हूँ। चांदखेड़ी के चन्दाप्रभु तेरे चरणों में आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं चांदखेड़ी के बन्द-तल- प्रकोष्ठ में विराजमान यक्ष-रक्षित चंदाप्रभु जिनप्रतिमासमूहाय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
भोगों में भ्रमित हुआ मम मन चंचल परिणति में रहता हूँ। चंचल मन वश में करने को मैं धूप दशांग चढ़ाता हूँ।।
भव-सागर पार करो स्वामी, विनती करने को आया हूँ। चांदखेड़ी के चन्दाप्रभु तेरे चरणों में आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं चांदखेड़ी के बन्द-तल- प्रकोष्ठ में विराजमान यक्ष-रक्षित चंदाप्रभु जिनप्रतिमासमूहा अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7।
शुभ जीवन पाने को जिनवर फल लेकर अर्चन करता हूँ।
दो आशीष शिव-फल पाऊँ मैं यह फल अर्पित करता हूँ ।।
भव-सागर पार करो स्वामी, विनती करने को आया हूँ। चांदखेड़ी के चन्दाप्रभु तेरे चरणों में आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं चांदखेड़ी के बन्द-तल- प्रकोष्ठ में विराजमान यक्ष-रक्षित चंदाप्रभु जिनप्रतिमासमूहाय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल चंदन अक्षत आदिक से अर्घ्य बनाकर लाया हूँ। प्रभु तेरे चरणों में अन्तर मन से यह अर्घ्य चढ़ाता हूँ।।
भव-सागर पार करो स्वामी, विनती करने को आया हूँ। चांदखेड़ी के चन्दाप्रभु तेरे चरणों में आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं चांदखेड़ी के बन्द-तल- प्रकोष्ठ में विराजमान यक्ष-रक्षित चंदाप्रभु जिनप्रतिमासमूहाय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा | 9 |
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