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पौष वदी एकादशी, जय-जयकार महान्। चंदा जग में आ गया, उजियारे की खान।।
ऊँ ह्रीं सोनागिर-विराजित-चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
जग का झंझट छोड़कर, तप करने वन जाये। ऊँ नमः मुख उच्चरे, दीक्षा स्वयं ही पाये।
ऊँ ह्रीं सोनागिर-विराजित-चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
समवशरण रचना करी, भव्य जीव सब आये। दीपक केवल का जगा, जन-जन मन हर्षाये।।
ऊँ ह्रीं सोनागिर-विराजित-चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय फाल्गुनकृष्णा-सप्तम्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
श्री सम्मेद को चल दिये, किया था ऐसा ध्यान।
अष्ट कर्म को नष्ट कर, पहुँचे शिवपुर थान।।
ऊँ ह्रीं सोनागिर-विराजित-चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय फाल्गुनशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाल (चैपाई) हे करुणा-सागर गुण-गण-आगर, करुणा हम पर बरसाओ।
हे दयाभंडारी, कृपा तुम्हारी, मेरा जीवन हर्षाओ।। हे चन्द्रप्रभु जिनराज तुम्हारी, पूजा करने आया हूँ। जंजाल कर्मों को छूटे, यह भाव साथ में लाया हूँ।। है पड़ी आत्मा पर प्रभुवर, यह जन्म मरण की बेड़ी है।
लाखों की बेड़ी तोड़ी है, तेरी तो कृपा घनेरी है।।
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