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जयमाला
हे
चन्द्रप्रभु तुम जगतपिता, जगदीश्वर तुम परमात्मा हो। तुम ही हो नाथ अनाथों के, जग को निज आनंद दाता हो। 1।
इन्द्रियों को जीत लिया तुमने, जितेन्द्र नाथ कहाये हो। तुम ही हो परम हितैषी प्रभु, गुरु तुम ही नाथ कहाये हो ।2। इस नगर तिजारा में स्वामी, देहरा स्थान निराला है। दुख दुखियों का हरने वाला, श्री चन्द्र नाम अति प्यारा है । 3 । जो भाव सहित पूजा करते, मनवांछित फल पा जाते है। दर्शन से रोग नसे सारे, गुन-गान तेरा सब गाते हैं।4। मैं भी हूँ नाथ शरण आया कर्मों ने मुझको रौंदा है। यह कर्म बहुत दुःख देते हैं प्रभु एक सहारा तेरा है।5। कभी जन्म हुआ कभी मरण हुआ, हे नाथ बहुत दुःख पाया है। कभी नरक गया कभी स्वर्ग गया, भ्रमता-भ्रमता ही आया है। 6 ।
तिर्यंच गति के दुःख सहे, ये जीवन बहुत अकुलाया है। पशुगति में मार सही भारी, बोझा रख खूब भगाया है।7। अंजन से चोर अधम तारे, भव- सिन्धु से पार लगाया है। सोमा की सुन कर टेर, प्रभु नाग को हार बनाया है।8।
समन्तभद्र को स्वामी, आ चमत्कार दिखलाया है। कर चमत्कार को नमस्कार, चरणों में शीश झुकाया है।9। इस पंचमकाल में हे स्वामी, क्या अद्भुत महिमा दिखलाई। दुःख दुखियों का हरने वाली, देहरे में प्रतिमा प्रकटाई। 10। शुभ-पुण्य-उदय से हे स्वामी, दर्शन तेरा करने आया हूँ। इस मोह जाल से हे स्वामी, छुटकारा पाने आया हूँ।11। श्री चन्द्रप्रभु मोरी अर्ज सुनो चरणों में तेरे आया हूँ। भवसागर पार करो स्वामी यह अर्ज सुनाने आया हूँ। 12। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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