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ले तन्दुल अमल अखण्ड, थाली पूर्ण भरो। अक्षय-पद पावनहेतु, हे प्रभु पाप हरो।। बाड़ा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही।
काटौ सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
ले कमल केतकी बेल, पुष्प धरूं आगे। प्रभु सुनिये हमरी टेर, काम कला भागे।। बाड़ा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही।
काटौ सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
नैवेद्य तुरत बनवाय, सुन्दर थाल सजा। मम क्षुधारोग नश जाय, भाऊं वाद्य बजा।। बाड़ा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही।
काटौ सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 57
हो जगमग-जगमग ज्योति, सुन्दर अनियारी। ले दीपक श्री जिनचन्द्र, मोह नशे भारी।। बाड़ा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही।
काटौ सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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