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निज आतम में इन कर्मों ने, भवआताप बढ़ाई है। शीतल चंदन समभावों से, शान्त तपन कर पायी है।
क्षेत्र अतिशय भव्योदय है, अतिशयकारी महिमा है।
सुमतिनाथ का अद्भुत अतिशय भू से निकली प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीभव्योदय-अतिशयक्षेत्र-स्थित भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008
गुणसंयुक्त श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शाश्वत अक्षय पद पर बैठे, सुमतिनाथ भगवान प्रभु। अक्षय पद को पाने में, यह अक्षत तुम्हें चढ़ाऊँ प्रभु।।
क्षेत्र अतिशय भव्योदय है, अतिशयकारी महिमा है।
सुमतिनाथ का अद्भुत अतिशय भू से निकली प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीभव्योदय-अतिशयक्षेत्र-स्थित भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008
गुणसंयुक्त श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
काम बाण से व्यथित रहा हूँ, चरण शरण में आया हूँ। निष्काम दशा को प्राप्त करूँ, यह पुष्प चढ़ाने आया हूँ।।
क्षेत्र अतिशय भव्योदय है, अतिशयकारी महिमा है।
सुमतिनाथ का अद्भुत अतिशय भू से निकली प्रतिमा है।। ॐ ह्रीं श्रीभव्योदय-अतिशयक्षेत्र-स्थित भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008
गुणसंयुक्त श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षुधा तृषा से तृषित रहा हूँ, कर्म वेदनीय का मारा। नैवेद्य समर्पित करता हूँ, ये रोग क्षुधा नश जाय मेरा।।
क्षेत्र अतिशय भव्योदय है, अतिशयकारी महिमा है।
सुमतिनाथ का अद्भुत अतिशय भू से निकली प्रतिमा है।। ॐ ह्रीं श्रीभव्योदय-अतिशयक्षेत्र-स्थित भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008
गुणसंयुक्त श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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