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ले स्वेतचन्दन कृष्ण अगर, कपूर वासित शीतलम्, तसु गन्धवस मधुपावली, मदमत्त नृत्यत कैकल।।
श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र के, चरणारबिन्द निहारि के,
करि चित्तचातक चतुर चर्चित, जजत हूँ हितवारिके। ओं ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
नहिं खण्ड एकौ सब अखण्डित, ल्याय अक्षत पावने, दिशि विदिशि जिनकी महककरि, महकै लगे मनभावने।।
श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र के, चरणारबिन्द निहारि के,
करि चित्तचातक चतुर चर्चित, जजत हूँ हितवारिके। ओं ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
मनहरन वर्ण विशाल फूले, कमल कुन्द गुलाब के, केतकी चम्पा चारु मरुवा, पुष्प आव सुताव के।। श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र के, चरणारबिन्द निहारि के,
करि चित्तचातक चतुर चर्चित, जजत हूँ हितवारिके। ओं ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
पक्कान्न पूरित गायघृत सों, मधुर मेवा वासितम्, गोक्षीर मिश्रित थारभरिभरि, क्षध पीर विनाशतम्।। श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र के, चरणारबिन्द निहारि के,
करि चित्तचातक चतुर चर्चित, जजत हूँ हितवारिके। ओं ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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