________________
सुमन सुमन पियारे, चारु मन्दार वारे । कलियन कहना रे, खूब फूले सिधारे।। नमि जिनवर केरे, कञ्ज आभा सु हेरे, पद अमल घनेरे, पूजिये भक्ति प्रेरे॥ ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
चतुर जनन साजी, पक्व नैवेद्य ताजी । क्षुध रुजसि गमाजी, देखि चन्दा सुलाजी।। नमि जिनवर केरे, कञ्ज आभा सु हेरे, पद अमल घनेरे, पूजिये भक्ति प्रेरे। ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
बहु तिमिर नसावे, दीर्घ उद्योग ल्यावे । निज परहिं लखावे, दीप एवं बनावे।। नमि जिनवर केरे, कञ्ज आभा सु हेरे, पद अमल घनेरे, पूजिये भक्ति प्रेरे ॥ ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
दहन करत नीके, धूप नाना सुरंगी । जिह पर बहुभृगी, नृत्यते होय रंगी। नमि जिनवर केरे, कञ्ज आभा सु हेरे, पद अमल घनेरे, पूजिये भक्ति प्रेरे।। ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
फल शुकप्रिय नीके, आम्र नीबू न फीके। दरशन शुभ ही के, रत्नथारा भरीके।। नमि जिनवर केरे, कञ्ज आभा सु हेरे, पद अमल घनेरे, पूजिये भक्ति प्रेरे॥ ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
गीता छन्द
जल गन्ध अक्षत सुमनमाला, चरु सु दीप जरायके । वर धूप नाना मधुर फल ले, अध्य शुद्ध बनायके || पदअमल आकृति देखि दुखहर, पूजिये हरषाय के। जो जजें भोगे अनुपम, इन्द पदवी पायके।
ओं ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अनघ्यपदप्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
374