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पंचकल्याणक
छन्द मालती तेईसा है गुणशील तनी सरिता अर-नाथ तनी जननी सुखदानी, भाग्य सराहत लोक सबे धनि, दीरघ भाग्यवती महारानी। जा सम और न दूजी तिय महि-मण्डल मांझ कहूँ पहिचानी,
फाल्गुन की सित तीज दिना तसु, कूखि वसे जिन पूजहुँ जानी।। ओं ह्रीं फाल्गुनशुक्लतृतीयां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अध्यम्।
चौदशि सेत कही अगहान, तनी अर जादिन जन्म लियो है। तादिन की प्रभुता सुनिके भवि, जीवन केर जुड़ात हियो है।। इन्द्र शची मिलके सब देवन, आयके जन्म उत्साह कियो है।
सो दिन जानि विचारि सभी वह, आनन्द सों हम अध्य दियो है।। ओं ह्रीं मगसिरशुक्लचतुर्दश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुन्दर हे अगहान सुदी दश-मी, शुभ को गनियो तिथि भारी। सोचत तादिन एम प्रभू जग, जाल सदा जिय हो दुखकारी।। लेत दिगम्बर भेष भलो तृण, जीरण के सम त्यागत नारी॥
सो जिनदेव सहाय हमें नित, होउ चढ़ावत अध्य सिधारी।। ओं ह्रीं मगसिरशुक्लचतुर्दश्या तपकल्याणकप्राप्ताय श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक बारसि सेत दिना लहि, केवल ज्ञान महान अनूठा। इन्द रची समवस्मृति सुन्दर, योजन एक गनावत हूँठा।।
बैठत देव सिंहासन ऊपर, अन्तरीक्ष जहां भरि मूठा।
पूजत अध्य बनाय तुम्हें फिर, चूमिहिगो कँह काल अँगूठा।। ओं ह्रीं कार्तिकशुक्लद्वादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अध्यम्।
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