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जल फल आदि मिलाय गाय गुण, भगति भाव उमगाय। जजौं तुम्हें शिव तिय वर जिनवर, आवागमन मिटाय ।।
पूजों भावसों, श्री पदमनाथ-पद सार, पूजों भावसों। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्घ्य (छन्द द्रुतविलम्बित तथा सुन्दरी मात्रा 16) असित माघ सु छट्ठ बखानिये, गरभ मंगल ता दिन मानिये। उरध ग्रीवकसौं चय राज जी, जजत इन्द्र जजै हम आज जी।।
ॐ ह्रीं माघ कृष्णा षष्ठ्या गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
सुकल कार्तिक तेरस कों जये, त्रिजग जीव सु आनन्द को लये। नगर स्वर्गसमान कुसम्बिका, जजतु हैं हरिसंजुत अम्बिका।। ॐ ह्रीं कार्तिक-शुक्ला त्रयोदश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय
श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
सुकल तेरस कार्तिक भावनो, तप धर्यो वन षष्टम पावनो। करत आतम ध्यान धुरन्धरो, जजत हैं हम पाप सबै हरो।। ॐ ह्रीं कार्तिकशक्ला त्रयोदश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
सुकल पूनम चैत सुहावनी, परम केवल सो दिन पावनी। सुर सुरेश नरेश जजै तहाँ, हम जजें पद पंकज को इहां।।
ॐ ह्रीं चैत्र पूर्णिमायां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
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