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श्री शान्तिनाथ जिन-पूजा ( रचयिता - कविवर मनरंगलाल )
स्थापना- गीता छन्द
शुभ हस्तिनापुर नृपति जहँ हैं, विश्वसेन महाबली, पितु मातु ऐरा शांति सुत भवे, कनक छबि देही भली।
कुरुवंश आयुष वरष लख, चालीस धनु ऊँचे खरे, सर्वार्थसिद्धिविमान तजि मृग, चिन्ह धरि इह अवतरे ।
जो होय चक्री रतिपती अरु, तीर्थ करता सोहने, कर का सब विधि सबनके फिरि, भये शिवतिय मोहने। सोहरो पातक करो किरपा, धरो चरण यहां तनी ।
मैं करो पूजा होउँ जासों, शुद्ध पातक को हनी ।
ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (इति आह्वाननम् )
ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठौ तिष्ठौ ठः ठः। (स्थापनम् ) ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितौ भव भव वषट् (सन्निधिकरणम्)
नीको नीर गंगादी को, जीते नीके नाम क्षीरो - दधी को ।
कीजे
पूजा शान्ति स्वामी सु तेरी, जासें नासे कालिमा काल केरी || ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जाकी आछी गन्ध ले भौंर माते। ऐसी गन्ध चन्दनादी सुता ।। पूजा शान्ति स्वामी सु तेरी, जासें नासे कालिमा काल के || ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
गंगा पानी, सींचे हूये ऽवदाता । शाली सोने पात्र मौ धारि साता।। कीजे पूजा शान्ति स्वामी सु तेरी, जासें नासे कालिमा काल के ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
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