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विषयभोग सब विष के सम जाने मने, राजपाट धनधान्य पुत्र दारा जने।।
माघ श्वेत त्रयोदशि के दिन छाडि के, संजम ले वन वसे जजहुँ पद जानिके। ओं ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
___ पौष पूर्णिमा के दिन केवल होत ही, भयो जगत मधि क्षोभ और उद्योत ही।
निज-निज वाहन चढि इन्द्रादिक आय के, जजत भये हित पाय जजहँ मैं भाय के। ओं ह्रीं पौषपौर्णमास्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
निज-कारज पर-कारज करि जिन धर्म जू, जेठ तनी सित चैथ हने वसुकर्म जू।
___मुक्तिकन्यका वरी शिखर-सम्मेद से। मैं पूजत युग चरण बडी उम्मेद से। ओं ह्रीं ज्येष्ठशुक्लचतु,याम् मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाल त्रिभंगी छन्द
जय धरमनाथ वर धरम धराधर, आत्मधरम हर टेकधरी, तजि सकलअनातम, लहि अध्यातम, रात मिथ्यातम नाशकरी।
जय तुअ पद पक्षी पावत पक्षी, जो शिवनक्षी प्रगट बने, मन वच तन ध्यावे मनरंग गावे, कष्ट न पावे, सो सुपने।।
स्रग्विणी छन्द जय मुदा रूप तेरे क्षुणा रोग ना, ना तृषा ना मृषा ऽऽलस्य ना शोक ना।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना, फेरि होवे न या लोक में आवना। तात ना मात ना मित्र ना शत्रु ना। पुत्र दारादि एकौ कहे कुत्र ना।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना, फेरि होवे न या लोक में आवना। वर्ण ना गन्ध ना ना रस स्पर्श ना। भेद ना खेद ना स्वेद ना दर्श ना।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना, फेरि होवे न या लोक में आवना। कर्म ना भर्म ना और नोकर्म ना। पञ्च इन्द्री मई रंच हूँ न शर्म ना।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना, फेरि होवे न या लोक में आवना। राग ना रोष ना गान ना मोह ना। पाप ना पुण्य ना बन्ध ना छोह ना।।
परिये नाथ मेरी मनोकामना, फेरि होवे न या लोक में आवना।
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