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सुमन मनोहर चम्प, चमेली देखिये, प्रफुलित कमल गुलाब, मालती के लिये।। प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के। ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
हरत क्षुधा अति, करत पुष्टता मिष्टते, व्यञ्जन नाना भांति, थार भर इष्टते।। प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के। ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय क्षधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक ज्योति जगाय, गाय गुणनाथ के, निज पर देखन काज, ल्याय निजहाथ के प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के। ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
खेऊँ धूप मँगाय, धूपदह में भली, जासु गन्धकरि होत, सुमतवारे अली। प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के।
ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
मधुर वर्ण नाना, फल भरि थार में, ल्याय चरण ढिग धरहुँ, बड़े सतकार में। प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के।
ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
पय चन्दन वर तंदुल सुमना सूप ले, दीप धूप फल अध्य, महासुख कूप ले। प्रभु अनन्त युगपाद, सरोज निहारी के, जजहुँ अटल पद-तेहु, हर्ष उर धारि के। ओं ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
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