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मैं जीव संसारी भयो अरु मर्यो ताको पारना। प्रभु पास अक्षत ल्याय धारे अखय-पद के कारना।। तुम नाथ शीतल करो शीतल मोहि भवकी तापसे।
मैं जजौं युग-पद जोरि करि मो काज सरसी आपसे।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।31
इन मदन मोरी सकत थोरी रह्यो सब जग छाय के। ता नाश-कारन सुमन ल्यायो महाशुद्ध चुनाय के।। तुम नाथ शीतल करो शीतल मोहि भवकी तापसे।
मैं जजौं युग-पद जोरि करि मो काज सरसी आपसे।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
क्षुध-रोग मेरे पिंड लोगों देत माँगे ना धरी। ताके नसावन-काज स्वामी ले चरू आगे धरी।। तुम नाथ शीतल करो शीतल मोहि भवकी तापसो।
मैं जजौं युग-पद जोरि करि मो काज सरसी आपसो।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
अज्ञान तिमिर महान अन्धकार करि राखो सबै। निज-पर सुभेद पिछान कारण दीप ल्यायो हूँ अबै।। तुम नाथ शीतल करो शीतल मोहि भवकी तापसे।
मैं जजौं युग-पद जोरि करि मो काज सरसी आपसे।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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