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पंचकल्याणक - सोरठा नौमी वदी महान, फाल्गुन की शुभ जा दिना। गरभ रहे भगवान, जजों अध्य सों चरन-युग।। ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
जनमे प्रभु गुण-खान, मगसिर सुदि एकम दिना। नमों जोरि युग पान, जजों अरघ सों चरणयुग।। ओं ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लप्रतिपदायां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सुदि एकम अगहान, तप लीन्हों घरवार तजि। धरत महाशुभ ध्यान, जजों अध्य सों चरन-युग।। ओं ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लप्रतिपदायां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
उपजो केवल-ज्ञान कार्तिक सुदि द्वितिया दिना। भये सुयोगि भगवान, जजों अरघ सों चरणयुग।। ओं ह्रीं कार्तिकशुक्लदितीयायां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सुदि अष्टमि परवान, भादों मास समेद तें। शिवपद लियो महान, जजो अरघ सों चरणयुग।। ओं ही भाद्रपदशुक्लाष्टम्यां मोक्षकल्याणकमंडिताय श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय अयम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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