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जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। सहस जीभ कर जो प्रभुताई। कथन करे तो पार न पाई।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। मैं नर हीनबुद्धि कहँ पाऊँ। जो प्रभु तो महान गुण गाऊँ।।
जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। भक्ति-सहाय करो जयमाला। दुखी जाने प्रभु करहु निकाला।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद-सेवा।।
घत्ता
इह दारिदहरिणी, संकटअरनी, जयमाला, सुखकी करनी। जो पढ़े निरन्तर, मनवचतन करि, सो पावे अष्टमधरनी।। ओं ह्री श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्म्यम्।
शार्दूल विक्रीडित जो यह शुद्ध सुपार्श्वनाथ प्रभु की, पूजा करे कारिता। अनुमोदे मन वचन काय सतत, संसार सो हारिता।। पावै ईशपनो महा विभुपनो, लोके अलोके लखे। पूजें देवपती त्रिकाल चरणा, आनन्द पावे अखे।।
ओं ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः।
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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