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सुसुरेश नरेश गणेश जिते, असुरेश कहे धनईश तिते।।19॥
तव पावत पार न एक रती, भगवान बड़े तुम हो सुमती। विनती सुन ले अपने जन की, अब मेंट विचा सुगरीबन की।।20।
धनि रीति कही जुअ वाहन की, जग वूड़त ताहि निवाहन की। प्रभु तो प्रभुता कबलों कहिये, लखिके छवि तो चुप द्वै रहिये।।21।। ओं ह्री श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्घ्यम्।
घत्ता जिन सुमति विशाला, जम में आला, तिन जयमाला, यह सुथरी। जो कंठी करि है, आनद धरि है, ना मारे तिहि काल अरी॥22॥
सोरठा सुमति सुखकार, घनइव गरजन करि सहित। वर्षों आनंद धार, भविजन खेती ऊपरे।।
ओं ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय नमः
(इस मंत्र की जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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