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करूँ मँगाय धूप सार, अग्नि के सुसन्मुखा । सुखारि होय आयके, सुवास ले शिलीमुखा ।।
पदाब्ज द्वै सुबुद्धिनाथ, के सुबुद्धि देत ही । जजों अनन्त दर्शज्ञान, सौख्य वीर्य हेत ही।।
ओं ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
लवंग मालती सुता, शुकप्रिया सुद्रावड़ी | निकोचकं सुगोस्तनी, भराय थालिका बड़ी ।।
पदाब्जद्वै सुबुद्धिनाथ, के सुबुद्धि देत ही । जजों अनन्त दर्शज्ञान, सौख्य वीर्य हेत ही।।
ओं ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
सुवारि गन्ध अक्षतं, प्रसून के चरू -वरं । सुदीप धूप और फलं, बनाय अघ्य सुन्दरीम् ॥ पदाब्ज द्वै सुबुद्धिनाथ, के सुबुद्धि देत ही
जजों अनन्त दर्शज्ञान, सौख्य वीर्य हेत ही ।।
ओं ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अनघ्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचकल्याणक - सोरठा
श्रावन सित पख जान, द्वैत महादिन जान शुभ रहे गर्भ में आन, पूजों तिनपद अध्य सों। ओं ह्रीं श्रावणशुक्ल द्वितीयायां गर्भकल्याणकमण्डिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
चैत्र सुदी परवान, रुद्र संख्य तिथि के दिना । जन्म लीन भगवान, , सुमतिप्रभू भवभीति हर।। ओं ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्याँ जन्मकल्याणक प्राप्ताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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