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तन्दुल प्रछाले नीर प्रासुक, खरे भरि ले थार में।
चन्द्रकान्त समान तिनसों, करों पूजा सार मैं।।
अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई।
__ संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
कुन्द चम्पक राय बेला, कुंज और कदम्ब के। ले फूल नाना भांति तिनसों जजों पद अभिनन्द के।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई।
संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई।। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा ।
गोक्षीर तन्दुल सरकरा जुत, फेनि शतछिद्रा बनी। लखि क्षुधा रोग नसात तिनसों, पूजहूँ जगके धनी।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई।
संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई।। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
कनक दीयो सुरभि सी, कपूर वाती बारिके। सब दिशा करत उद्योत तासों, जजोंपद हित धारिके।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई।
संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई।। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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