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घत्ता
इह वरमाला, अजित प्रभू की, कण्ठमाहि जो नर, धरसी। करसी सो अतिसुख, मेंट सकलदुख, भवसागर फिर नहिं परसी। ओं ह्री श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय सर्वसुख प्राप्तये पूर्णार्घ्यम्। शार्दूलविक्रीडत छन्द
जो या श्रीअजितेशपाद जजि हैं, कारिकृतामोदना । सो धान्यादिक पुत्र मित्र वनिता, पावे सदा पावना।। आयू हो विपुला आरोगतनुता, जावे न मा पार्श्वतें। पोछेतें शिववाम जाय शुभले, भोगे सुखं सास्वते।।
ओं ह्रीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय नमः (इस मंत्र का जाप्य देना)
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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