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अगर तगर कृष्णागर, श्रीखंडादिक चूर हुताशन में। खेवत हों तुम चरन-जलज-ढिंग, कर्म छार जार दै छन में ।
संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।71
श्रीफल लौंग बदाम छुहारा, एला पिस्ता दाख रमैं। लै फल प्रासुक पूजों तुम पद, देहु अखयपद नाथ हमैं ॥ संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ किया। तुमको अरपों भाव भगतिधर, जै जै जै शिव-रमनि-पिया ।
संभव-जिन के चरन-चरचतें, सब आकुलता मिट जावे।
निजि-निधि ज्ञान-दरश-सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावे।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक-अर्ध्यावली (छन्द-हंसी मात्रा 15) माता-गर्भविषं जिन आय, फागुन-सित-आठै सुखदाय। सेयो सुरतिय छप्पन-वृंद, नानाविधि मैं जजौं जिनंद।।
ॐ ह्रीं फाल्गुन-शुक्लाष्टम्यां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।1।
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