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-खण्डनकार ही ।
उत्तम अखण्डित सालि उज्ज्वल, दुरति-ख करि पुञ्ज श्रीजिन चरण आगैं, अखै-पद-करतार ही। भवि पूजि शीतलनाथ जिनवर, नशें भव के ताप ही। आतंक जाय पलाय शिव-तिय, होय सनमुख आप ही
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। 31
निरदोष-अर्घ अनेक विधि के, कुसुम पावन ल्याय ही।
जिन चरण चरचि उछाह सेती, समरवाण नसाय निर्वपामीति स्वाहा | 4 ॥ ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाण - विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
पकवान सुन्दर सुरहि घित करि, छहों रस के मिष्ट ही । धरि कनक-भाजन पूजि जिनवर, T नारी दुष्ट ही।। भवि पूजि शीतलनाथ जिनवर, नशें भव के ताप ही। आतंक जाय पलाय शिव-तिय, होय सनमुख आप ही
ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।।
मणि-दीप जोत उद्योत सुन्दर, कनक-भाजन धारिये। जिन पूजि भविजन मोह नारी, सप्त-तत्त्व निहारिये।। भवि पूजि शीतलनाथ जिनवर, नशें भव के ताप ही। आतंक जाय पलाय शिव-तिय, होय सनमुख आप ही ।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार - विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
श्रीखण्ड अगर कपूर उत्तम, कनक-धूपायन भरें।
भवि खेय श्रीजिनचरण आगे, दुष्ट कर्म सबै जरें ।। भवि पूजि शीतलनाथ जिनवर, नशें भव के ताप ही ।
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