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मुकतासम तन्दुल, अमल अखण्डित, चन्द किरण सम भरि थारी। करि पुञ्ज मनोहर, जिनपद आज, लहौं अखै पद सुखकारी।। अभिनन्दन स्वामी अन्तरयामी, अरज सुनो अति दुख पाऊँ।
भव-वास वसेरा, हरि प्रभु मेरा, मैं चेरा तुम गुण गाऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीअभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मन्दार जु सुन्दर, कुसुम सुल्या३, गन्धलुब्ध मधुकर आवै। जिनवर पद आगैं, पूज रचावें, समरवाण नसि के जावै।। अभिनन्दन स्वामी अन्तरयामी, अरज सुनो अति दुख पाऊँ।
भव-वास वसेरा, हरि प्रभु मेरा, मैं चेरा तुम गुण गाऊँ।। ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दननाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नानाविध चरु लै, मिष्ट मनोहर, कनकथाल भरि तुम आगें। पूजन कू ल्यायौ, अति सुख पायो, रोग क्षुधादि सवै भागें।। अभिनन्दन स्वामी अन्तरयामी, अरज सुनो अति दुख पाऊँ।
भव-वास वसेरा, हरि प्रभु मेरा, मैं चेरा तुम गुण गाऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीअभिनन्दननाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मुझ मोह सताओ, अति दुख पायो, ज्ञान हो करिकै जोरा। मणिदीप उजारा, तुम ढिंग धारा, हरो तिमिर प्रभुजी मोरा।। अभिनन्दन स्वामी अन्तरयामी, अरज सुनो अति दुख पाऊँ।
भव-वास वसेरा, हरि प्रभु मेरा, मैं चेरा तुम गुण गाऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीअभिनन्दननाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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