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बादाम नारंगी श्रीफल पुंगी, आदि अभंगी सों अरचौं। सब विघनविनाशे सुख प्रकाशै, आतम-भासै भौ विरचौं।।
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं।
मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेश।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥
जल-फल सब सज्जे बाजत बज्जै, गुन-गन-रज्जे मन-मज्जे। तुअ पद-जुग-मज्जै सज्जन जज्जै, ते भव-भज्जै निजकज्ज।।
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं।
मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक-अर्ध्यावली
(छन्द द्रुतमध्यकं १५ मात्रा) जेठ असेत अमावसि सोहे, गर्भ-दिना नंद सो मन-मोहे।
इंद-फनिंद जजे मन-लाई, हम पद-पूजत अर्घ चढ़ाई।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्ण-अमावस्यायांगर्भमंगल-प्राप्तायश्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
माघ-सुदी-दशमी दिन जाये, त्रिभुवन में अति-हरष बढ़ाये।
इंद-फनिंद जजें तित आई, हम इत सेवत हैं हुलसाई। ॐ ह्रीं माघशुक्ल-दशमीदिनेजन्ममंगल-प्राप्तायश्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
माघ-सुदी-दशमी तप धारा, भव-तन-भोग अनित्य विचारा। इंद-फनिंद जजे तित आई, हम इत सेवत हैं सिर-नाई।। ॐ ह्रीं माघशुक्ल-दशमीदिने दीक्षाकल्याणक-प्राप्ताय श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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