________________
श्री अजितनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री रामचन्द्र जी)
सकल कर्म हनि जिनं शिव खेत मैं, गिरि सम्मेदतें गये तिनां के हेत मैं। आह्वानन संस्थापन अरु सन्निधि करूँ,
मन वच तन करि शुद्ध बार त्रय उच्चरूँ।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
(त्रिभंगी छन्द) गंगा सम नीरं, प्रासुक सीरं, कनक रतनमय भुंग भरौं। जर मरण पिपासं, हरि सब त्रासं, मन वच तन त्रय धार करौं।। श्रीअजित जिनेश्वर, पुहमि नरेश्वर, सुर नर खग वन्दित चरणं।
मैं पूजूं ध्याऊँ, गुण गण गाऊँ, शीश नवाऊँ, अघ हरणं।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
मलयागर ल्यावै, अगर मिलावै, केसर युत घनसार घसैं। भवताप निवारण, शिव सुख कारण, पूजि जिनेश्वर पाप नसँ।। श्रीअजित जिनेश्वर, पुहमि नरेश्वर, सुर नर खग वन्दित चरणं।
मैं पूनँ ध्याऊँ, गुण गण गाऊँ, शीश नवाऊँ, अघ हरणं।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
139