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पौषकी श्याम एकादशी को स्वजी, जन्मलीनों जगन्नाथ धर्मध्वजी।
नाग-नागेन्द्र नागेन्द्र पै पूजिया, मैं जजों ध्यायकें भक्ति धारों हिया।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
कृष्णएकादशी पौषकी पावनी, राजको त्याग वैराग धर्यो वनी।
ध्यान चिद्रपको ध्याय साता मई, आपको मैं जजों भक्ति भावे लई। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।3।
चैतकी चौथि श्यामा महाभावनी, ता दिना घातिया घाति शोभा बनी।
बाह्य आभ्यन्तरे छन्द लक्ष्मीधरा, जयति सर्वज्ञ मैं पादसेवा करा॥ ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-चतुर्थ्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
सप्तमी शुद्ध शोभे महासावनी, ता दिना मोच्छ पायो महापावनी।
शैलसम्मेदतें सिद्ध राज भये, आपकों पूजतें सिद्ध काजा ठये।। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला पार्श्व पर्म-गुनराशि है, पार्श्व कर्म-हरतार। पार्श्व शर्म-निजवास दो, पार्श्व धर्म-धरतार।।1।। नगर-बनारसि जन्म लिय, वंश-इक्ष्वाकु महान।
आयु बरष-शत तुंग नव, हस्त सुनो परमान।।2।। जय श्रीधर श्रीकर श्रीजिनेश, तुव गुणगण फणि गावत अशेष। जय-जय-जय आनन्द-कन्द चन्द, जय-जय भवि-पंकज को दिनन्द।।3।।
जय-जय शिवतिय बल्लभ महेश, जय ब्रह्मा शिवशंकर गनेश। जय स्वच्छ चिदंग अनंगजीत, तुम ध्यावत मुनिगण सुहृद मीत।4।।
जय गरभागम-मंडित महंत, जग जनमन-मोदन परम सन्त। जय जनम-महोच्छव सुखद धार, भवि-सारंग को जलधर उदार।।5।
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