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असित चैत सु नौमि सुहाइयो, जनम-मंगल ता दिन पाइयो।
हरि महागिरि पे जजियो तबै, हम जजें पद-पंकज को अबै।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
असित नौमि सु चैत धरे सही, तप विशुद्ध सबै समता गही।
निज सुधारससों भर लाइके, हम जजें पद अर्घ चढ़ाइके।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां तपमंगल-प्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
असित फागुन ग्यारसि सोहनों, परम-केवलज्ञान जग्यो भनौं।
हरि-समूह जजें तहँ आइके, हम जजें इत मंगल-नाइके।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
असित चौदसि माघ विराजई, परम मोक्ष सुमंगल साजई।
हरि-समूह जजें कैलाशजी, हम जजें अति धार हुलास जी। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीवृषभदेवाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(छन्द घत्तानंद) जय जय जिनचंदा, आदि-जिनंदा, हनि भवफंदा कंदा जू। वासव-शत-वंदा धरि आनंदा, ज्ञान-अमंदा नंदा जू।।1।। त्रिलोक-हितंकर पूरन पर्म, प्रजापति विष्णु चिदातम धर्म। जतीसुर ब्रह्मविदांबर बुद्ध, वृषंक अशंक क्रियाम्बुधि शुद्ध।।2।।
जबै गर्भागम मंगल जान, तबै हरि हर्ष हिये अति आन। पिता-जननी पद-सेव करेय, अनेक प्रकार उमंग भरेय।।3।। जन्मे जब ही तब ही हरि आय, गिरीन्द्र विर्षे किय न्हौन सुजाय। नियोग समस्त किये तित सार, सु लाय प्रभू पुनिप राज-अगार।।4।।
पिता कर सौंपि कियो तित नाट, अमंद अनंद समेत विराट।
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