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________________ बच्चे के जन्म के अवसर के लिए तैयार की गई सोने की सीढ़ी पर आपके चढने के बाद फिर वह दान में दे दी जानी चाहिए। सम्बंधितों और मित्रों को भोजन कराना चाहिए और जाति में मिठाई बांटनी चाहिए, मन्दिरों और यात्रा के स्थानों पर भेंट चढ़ानी चाहिए और पूजा करनी चाहिए। नवजात शिशु का नाम पवित्र शत्रुजय तीर्थ "सिद्धाचलजी" के नाम पर रखना चाहिए। जहां हम लोग हाल ही में यात्रा को गये थे।" सब परिवारजन इस प्रस्ताव को सुनकर प्रसन्न हुए। मेरी माताजी ने भी इसे स्वीकार कर लिया। मैंने आदर के साथ अपनी मा को सुझाव दिया कि उनके बाद भी उनका प्रिय नाम सदा हमारी स्मृति में ताजा रहे इसलिए "हम सिद्धाचलजी के पहले भाग "सिद्ध" को पहले रखें और उसके साथ आपका नाम (माताजी का नाम राजकंवर) जोड दें। इस प्रकार जब बालक जन्म ले तो उसका नाम 'सिद्धराज कुमार' रहे।" उन्होंने इसकी स्वीकृति दे दी।* सिद्धराजकुमार का जन्म : फरवरी १९०९ में सिद्धराजकुमार का जन्म हुआ। जिससे पूज्य माताजी तथा परिवार के सभी लोगों को अत्याधिक प्रसन्नता हई। उस छोटी लड़की के द्वारा सुझाये गये सभी समाजिकरीतिरिवाज तथा खुशियां दादीजी के द्वारा पूरी की गई। रोता हुआ बालक चुप हो गया : बम्बई संघ की लालबाग की बैठक में सर्व-सम्मति से जो प्रस्ताव स्वीकार किया गया था उसके अनुसार मैं उस समय कलकत्ता में सम्मेतशिखर के मुकद्दमे में लगा हुआ था। बालक के जन्म के शुभ समाचार पाकर मैं शीघ्र जयपुर आ गया। संभवत: जन्म के १०वें या ११वें दिन । मैंने बालक को अपनी गोद में लिया । तब अचानक ही वर जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगा। हम लोगों ने हर सम्भव प्रयास उसे शांत करने के लिए किये, लेकिन सभी प्रयास व्यर्थ गए । बच्चा निरन्तर रोता ही रहा, और हमारी चिन्ताएँ बढ़ती गयी। अन्तिम उपाय के रूप में मेरी माँ ने एक गीत गाकर उसे चुप करने का प्रयास किया। उस समय यह गीत गया : "सिद्धवड रूख समोसा" जैसे ही 'सिद्धवड' शब्द बालक के कानों में पहुंचा, उसने रोना बन्द कर दिया और पूरा गीत उसने बहुत ध्यान से सुना । अब बालक को चुप कराने का यह तरीका हमारे घर में मान्य कर लिया गया । जब कभी भी बालक बेचैन होता, तभी यह गीत उसे सुनाया जाता और वह हमेशा उसे ध्यान पूर्वक सुनता। one picture is worth more than thousands of words. "| हजारों शब्दों से एक चित्र या मूर्ति का अधिक प्रभाव पडता है *श्री सिद्धराजजी ढड्ढा के पिता स्व. श्री गुलाबचन्दजी ढड्ढा एम.ए. ने यह लेख अंग्रेजी में लिखा था। उसी प्रामाणिक लेख का सारा यह हिन्दी अनुवाद यहां प्रस्तुत हैं। -सम्पादक
SR No.009238
Book TitlePunarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2015
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size86 KB
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