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“पुष्प समर्पण"
"हृदय परिवर्तन के माध्यम से लेखन क्षेत्र में आपने मुजे welcome कीया... आज लेखन क्षेत्रमें जो भी कार्य कर पा रहा हूँ वह आपकी ही कृपा का फल है एसे परमोपकारी एवं विद्वान पं. उदयरत्नविजयजी म.सा. के करकमलो में सादर समर्पित....
एक तोते का पुनर्जन्म
लगभग ७६ वर्ष पूर्व की बात है कि प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थान पालीताणा में दर्शनार्थ आया हुआ एक परिवार मन्दिर के प्रांगण में कुछ देर के लिये विश्राम कर रहा था कि पुत्र-वधू ने एक पेड पर बैठे तोते के जोडे को देखकर कहा - "अगर इनमें से एक को हम घर पर ले चले तो कितना अच्छा रहे!" और इस कथन के ठीक एक वर्ष बाद पुत्र-वधू माँ बनी एवं एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। बालक जब ढाई वर्ष का हुआ तो परिवार तीर्थयात्रा पर बम्बई गया, वहां वालकेश्वर के आदिनाथ मन्दिर में बालक बहुत देर तक टकटकी बांध कर मूर्ति को देखता रहा। पिता ने पूछा"अरे चल, कितनी देर दर्शन करेगा?" बालक बोला- "मैंने ऐसी मूर्ति के दर्शन पहले भी किये हैं।" पिता ने हँसकर कहा - "पगला हुआ है। तूं तो पहली बार यहां आया है। दर्शन कहां से करता?" पर बालक सोचता रहा । संयोग की बात । एक वर्ष बाद ही परिवार पुनः पालीताणा आया और बालक ने स्पष्ट बताया कि वह यहां रहता था, पर एक तोते के रूप में और प्रतिदिन दोपहर २ बजे के बाद जब सब दर्शनार्थी चले जाते थे तो चुपचाप से मन्दिर के बन्द किवाडों के सींकचों के बीच में से अन्दर घुसकर केसर की थाली में पंजे डुबोकर मूर्ति पर केशर चढाकर दर्शन-पूजा करता था। यह मूर्ति और वालकेश्वर मन्दिर की मूर्ति एक सी है। माँ को याद आया कि उसने इसी तोते को देखकर उसे घर ले जाना चाहा था। तो यही तोता था जिसने इसी
-भूषण शाह