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________________ धवला पुस्तक 3 89 प्रमत्तसंयत जीवों का प्रमाण पाँच करोड़ तेरानवे लाख अट्ठानवे हजार दो सौ छह है और अप्रमत्तसंयत जीवों का प्रमाण दो करोड़ छियानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन है।।41।। उपशम श्रेणी आरोहकों का प्रमाण सोलसयं चउवीसं तीसं छत्तीस तह य वादालं। अडयालं चउवण्णं चउवण्णं होइ अंतिमए।।42।। निरन्तर आठ समय पर्यन्त उपशम श्रेणी पर चढ़ने वाले जीवों में अधिक से अधिक प्रथम समय में सोलह, दूसरे समय में चौबीस, तीसरे समय में तीस, चौथे समय में छत्तीस, पांचवे समय में ब्यालीस, छठे समय में अड़तालीस, सातवें समय में चौवन और अन्तिम अर्थात् आठवें समय में भी चौवन जीव उपशम श्रेणी पर चढ़ते हैं।।42।। क्षपक श्रेणी आरोहकों का प्रमाण वत्तीसमठ्ठदालं सट्ठी वाहत्तरी च चुलसीई। छण्णउदी अठुत्तरसदमठुत्तरसयं च बोधव्व।।43।। निरन्तर आठ समय पर्यन्त क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाले जीवों में पहले समय में बत्तीस, दूसरे समय में अड़तालीस, तीसरे समय में साठ, चौथे समय में बहत्तर, पाँचवे समय में चौरासी, छठे समय में छियानवे, सातवे समय में एक सौ आठ और आठवें समय में भी एक सौ आठ जीव क्षपक श्रेणी पर चढ़ते हैं, ऐसा जानना चाहिये।।43।। उपशमकों एवं क्षपकों का प्रमाण उत्तरदलहयगच्छे पचयदलूणे सगादिमेत्थ पुणो। पक्खिविय गच्छगुणिदे उवसम-खवगाण परिमाणं।।44।। उत्तर अर्थात् प्रचय को आधा करके और उसे गच्छ से गुणित करने
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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