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धवला उद्धरण
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है।।3।।
एयदवियम्मि जे अत्थपज्जया वयणपज्जया चावि। तीदाणागदभूदा तावदियं तं हवदि दव्वं ।।4।।
एक द्रव्य में अतीत, अनागत और 'अपि' शब्द से वर्तमान पर्यायरूप जितने अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय हैं, तत्प्रमाण वह द्रव्य होता है।।4।।
द्रव्य की एकानेकता नानात्मतामप्रजहत्तदेकमेकात्मतामप्रजहच्च नाना। अंगागिभावात्तव वस्तु यत्तत् क्रमेण वाग्वाच्यमनन्तरूपम्।।5।।
अपने गणों और पर्यायों की अपेक्षा नाना स्वरूपता को न छोडता हआ वह द्रव्य एक है और अन्वयरूप से एकपने को नहीं छोड़ता हुआ वह अपने गुणों और पर्यायों की अपेक्षा नाना है। इसप्रकार अनन्तरूप जो वस्तु है वही, हे जिन! आपके मत में क्रमशः अंगांगीभाव से वचनों द्वारा कही जाती है।।5।।
समास के प्रकार बहुव्रीह्यव्ययीभावो द्वन्द्वतत्पुरुषो द्विगु:। कर्मधारय इत्येते समासाः षट् प्रकीर्तिताः।।6।।
बहुव्रीहि, अव्ययीभाव, द्वन्द्व, तत्पुरुष, द्विगु और कर्मधारय इसप्रकार ये छह समास कहे गये हैं।।6।।
समासों के लक्षण बहु रथों बहुव्रीहिः परं तत्पुरुषस्य च। पूर्वमव्ययीभावस्य द्वन्द्वस्य तु पदे पदे ।।7।।