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धवला उद्धरण
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भय संज्ञा अइभीमदंसणेण य, तस्सुवजोगेण ओमसत्तीए। भयकम्मुदीरणाए, भयसण्णा जायदे चदुहि।।225।।
अत्यन्त भयानक पदार्थों के देखने से, उनका ख्याल होने से, शक्ति के हीन होने से और भय कर्म की उदीरणा होने से इन चार कारणों से भय संज्ञा उत्पन्न होती है।।225।।
मैथुन संज्ञा पणिदरसभोयणेण य, तस्सुवजोगे कुसीलसेवाए। वेदस्सुदीरणाए, मेहुणसण्णा हवदि एवं ।।226।।
स्वादिष्ट और गरिष्ठ रस युक्त पदार्थों का भोजन करने से, उस ओर उपयोग होने से, कुशील का सेवन करने से और वेदकर्म की उदीरणा होने से मैथुन संज्ञा उत्पन्न होती है।।226।।
परिग्रह संज्ञा उवयरणदंसणेण य, तस्सुवजोगेण मुच्छिदाए य। लोहस्सुदीरणाए, परिग्गहे जायदे सण्णा।।227।।
भोगोपभोग के उपकरण देखने से, उनका ख्याल होने से, मूर्छा के होने से और लोभ कर्म की उदीरणा होने से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है।।2271
उपयोग का लक्षण एवं भेद वत्थुणिमित्तं भावो, जादो जीवस्स जो दु उवजोगो। सो दुविहो णायव्वो, सायारो चेव अणायारो।।228।।
वस्तु को ग्रहण करने के लिये जीव का जो भाव होता है, उसे उपयोग कहते हैं। उसके दो भेद हैं- साकार और निराकार।।228।।