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समनस्क एवं अमनस्क मीमंसदि जो पुव्वं कज्जमकज्जं च तच्चमिदरं च। सिक्खदि णामेणेदि यसो समणो असमणो य विवरीदो।।221।।
जो कार्य करने से पूर्व कार्य और अकार्य का तथा तत्त्व और अतत्त्व का विचार करता है, दूसरों के द्वारा दी गई शिक्षाओं को सीखता है और नाम लेने पर आ जाता है, वह समनस्क है और जो इससे विपरीत है, वह अमनस्क है।221।।