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धवला पुस्तक 1
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पुरुष का स्वरूप पुरु-गुण-भोगे सेदे करेदि लोगम्हि पुरुगुणं कम्म। पुरु उत्तमो य जम्हा सो वण्णिदो पुरिसो।।171।।
जो उत्तम गुण और उत्तम भोगों में सोता है अथवा जो लोक में उत्तम गुणयुक्त कार्य करता है और जो उत्तम है, उसे पुरुष कहा है।।171।।
नपुंसक का स्वरूप णेवित्थी व पुमं णवूसओ उभय-लिंग-वदिरित्तो। इट्टावाग-समाणग-वेयण-गरुओ कलसु चित्तो।।172।।
जो न स्त्री है और न पुरुष है, किन्तु स्त्री और पुरुष संबंधी दोनों प्रकार के लिगों से रहित है, अवा की अग्नि के समान तीव्र वेदना से युक्त है और सर्वदा स्त्री और पुरुष विषयक मैथुन की अभिलाषा से उत्पन्न हुई वेदना से जिसका चित्त कलुषित है, उसे नपुंसक कहते हैं।।172।।
वेदरहित जीव कारिस-तणिट्टवागग्गि-सरिस-परिणम-वेयणुम्मुक्का। अवगय-वेदा जीवा सग-संभवणंत-वर-सोक्खा ।।173।।
जो कारीष (कण्डे की) अग्नि, तृणाग्नि और इष्टापाकाग्नि (अवे की अग्नि) के समान परिणामों से उत्पन्न हुई वेदना से रहित हैं और अपनी आत्मा से उत्पन्न हुए अनन्त और उत्कृष्ट सुख के भोक्ता हैं, उन्हें वेदरहित जीव कहते हैं।।173।।
क्रोध के प्रकार सिल-पुढवि-भेद-धूली-जल-राई-समाणओ हवे कोहो। णारय-तिरिय-णरामर-गईसु उप्पायओ कमसो।।174|| क्रोध कषाय चार प्रकार का है- पत्थर की रेखा के समान, पृथिवी