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________________ धवला उद्धरण 286 203 187 126 प्रक्षेपकसंक्षेपेण प्रतिपद्येकः पादो प्रतिषेधयति समस्तं प्रमाणनयनिक्षेपैः प्रमाणनयनिक्षेपैः प्रमाणनयनिक्षेपैः प्रमाणनयनिक्षेपैः प्रमितिररत्निशतं स्यादुच्चा प्राणिनि च तीव्रदुःखान् प्राय इत्युच्यते लोकश् 6/11 111/9 8/6 10/1 14/3 61/3 1/13 99/9 82 94 211 185 96/9 184 9/13 214 फ फालिसलागब्भहिया फालीसंखं तिगुणिय 6/10 9/10 195 195 7/13 11/4 213 107 152 3/7 बत्तीसं किर कवला बम्हे कप्पे बम्होत्तर बम्हे य लांतर वि य बहुरर्थो बहुव्रीहिः बहुविह बहुप्पायारा बहुव्रीह्यव्ययीभावी बादरसुहुमेइदिय बारस णव छ त्तिण्णि य बारस दस अट्ठेव य बारस पण दस पण दस बारस य वेदणिज्जे बारसविहं पुराणं बारसविहं पुराणं 138 7/3 197/1 6/3 233/2 31/6 1/7 1/12 19/6 77/1 77/9 150 205 135 28 180
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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