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________________ धवला उद्धरण 20 सिद्धों का सुख अदिसयमाद-समुत्थं विसयादीदं अणोवममणतं। अव्वुच्छिण्णं च सुहं सुद्धवजोगो य सिद्धाणं।।46।। अतिशयरूप आत्मा से उत्पन्न हुआ, विषयों से रहित, अनुपम, अनन्त और विच्छेद-रहित सुख तथा शुद्धोपयोग सिद्धों को होता है।।46।। भाविय-सिद्धताणं दिण्यर-कर-णिम्मलं हवइ णाणं। सिसिर-यर-कर-सरिच्छं हवइ चरित्तं स-वस-चित्तं।।47।। जिन्होंने सिद्धान्त का उत्तम प्रकार से अभ्यास किया है, ऐसे पुरुषों का ज्ञान सूर्य की किरणों के समान निर्मल होता है और जिसमें अपने चित्त को स्वाधीन कर लिया है, ऐसा चन्द्रमा की किरणों के समान चारित्र होता है।।47।। परमागम की महिमा मेरु ळ णिप्पकंपं णट्ठट्ठ-मलं ति-मूढ-उम्मुक्कं। सम्मइंसणमणुवममुप्पज्जइ पवयणब्भासा।।48।। प्रवचन अर्थात् परमागम के अभ्यास से मेरु के समान निष्कम्प, आठ मल-रहित, तीन मूढ़ताओं से रहित और अनुपम सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है।।48।। तत्तो चेव सुहाइं सलयाई देव-मणुय-खयराणं। उम्मूलियट्ठ-कम्मं फुड सिद्ध-सुहं पि पवयणादो।।49।। उस प्रवचन के अभ्यास से ही देव, मनुष्य और विद्याधरों को सर्व सुख प्राप्त होते हैं तथा आठ कर्मों के उन्मूलित हो जाने के बाद प्राप्त होने वाला विशद सिद्ध सुख भी प्रवचन के अभ्यास से ही प्राप्त होता है।।49।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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