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धवला पुस्तक 13
221 क्रियाओं में विद्यमान जीवों के इहलोक और परलोक से अपाय का चिन्तवन करे।।39।।
कल्लाणपावए जे उवाए विचिणादि जिणमयमुवेच्च। विचिणादि वा अवाए जीवाणं जे सुहा असुहा।।40।।
अथवा जिनमत को प्राप्त कर कल्याण करने वाले जो उपाय हैं उनका चिन्तवन करता है। अथवा जीवों के जो शुभाशुभ भाव होते हैं उनसे अपाय का चिन्तवन करता है।।40।।
विपाक विचय ध्यान पयडिट्ठिदिप्पदेसाणुभागभिण्णं सुहासुहविहत्तं। जोगाणुभागजणियं कम्मविवागं विजिंतेज्जो।।41।।
जो प्रकृति, स्थिति, प्रदेश और अनुभाग इन चार भागों में विभक्त है, जो शुभ भी होता है और अशुभ भी होता है तथा जो योग और अनुभाग अर्थात् कषाय से उत्पन्न हुआ है ऐसे कर्म के विपाक का चिन्तवन करे।।41।। एगाणे गभवगयं जीवाणं पुण्णपावकम्मफल। उदओदीरणसंकमबंधे मोक्खं च विचिणादी।।42।।
जीवों को जो एक और अनेक भव में पुण्य और पाप कर्म का फल होता है तथा उसका उदय, उदीरणा, संक्रम, बन्ध और मोक्ष का चिन्तवन करता है।।42।।
संस्थान विचय ध्यान जिणदेसियाइ लक्खणसं ठाणासणविहाणमाणाई। उप्पाद-ट्ठिदिभंगादिपज्जया जे य दव्वाणं।।43।।